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શનિવાર, 10 સપ્ટેમ્બર, 2011

आँवला : एक अमृत फल



आँवला विटामिन 'सी' का सर्वोत्तम और प्राकृतिक स्रोत है। इसमें विद्यमान विटामिन 'सी' नष्ट नहीं होता।

यह भारी, रुखा, शीत, अम्ल रस प्रधान, लवण रस छोड़कर शेष पाँचों रस वाला, विपाक में मधुर, रक्तपित्त व प्रमेह को हरने वाला, अत्यधिक धातुवर्द्धक और रसायन है। यह 'विटामिन सी' का सर्वोत्तम भण्डार है।

आँवला दाह, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है। जैसे देवताओं में ब्रह्मा-विष्णु-महेश हैं वैसे ही आयुर्वेद में हरड़-बहेड़ा और आँवला की कीर्ति है।

   आँवला विटामिन 'सी' का सर्वोत्तम और प्राकृतिक स्रोत है। इसमें विद्यमान विटामिन 'सी' नष्ट नहीं होता। यह भारी, रुखा, शीत, अम्ल रस प्रधान, लवण रस छोड़कर शेष पाँचों रस वाला...      

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- आमलकी धात्री। हिन्दी- आँवला। मराठी- काम्वट्ठा, आंवला। गुजराती- आँवला। कन्नड़-मलयालम- नेल्लि। तमिल- नेल्लिकाई। तेलुगू- उशीरिकई, उसरकाम। फारसी- आमलज। इंग्लिश- एम्बलिक माइरोबेलेन। लैटिन- एम्बिलिका आफिसिनेलिस।

रासायनिक संघटन : आँवले के 100 ग्राम रस में 921 मि.ग्रा. और गूदे में 720 मि.ग्रा. विटामिन सी पाया जाता है। आर्द्रता 81.2, प्रोटीन 0.5, वसा 0.1, खनिज द्रव्य 0.7, कार्बोहाइड्रेट्स 14.1, कैल्शियम 0.05, फॉस्फोरस 0.02, प्रतिशत, लौह 1.2 मि.ग्रा., निकोटिनिक एसिड 0.2 मि.ग्रा. पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा (ग्लूकोज), अलब्यूमिन, काष्ठौज आदि तत्व भी पाए जाते हैं।

उपयोग : त्रिफला की 3 औषधियों में से आँवला एक है। इसे सूखे चूर्ण के रूप में अन्य औषधियों के साथ नुस्खे के रूप में और अचार, चटनी, मुरब्बे के रूप में सेवन किया जाता है। च्यवनप्राश, ब्राह्मरसायन, धात्री लौह और धात्री रसायन आदि आयुर्वेदिक योग तैयार करने में आँवला काम आता है। यह अनेक रोगों को नष्ट करने वाला पोषक, धातुवर्द्धक और रसायन है। आयुर्वेद ने इसे 'अमृतफल' कहा है।

विटामिन सी ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से नष्ट हो जाता है, लेकिन मजे की बात यह है कि आँवले में विद्यमान विटामिन सी किसी भी सूरत में नष्ट नहीं होता। यह सदाबहार फल सभी ऋतुओं में चटनी, मुरब्बा, अचार, चूर्ण, अवलेह आदि के रूप में गुणकारी बना रह सकता है।

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